शिक्षा में खेलों का महत्व

Shiksha mein khelo ka mahatva

शिक्षा में खेलों का महत्व स्वस्थ शरीर ही धर्म साधक की पहली आवश्यकता मानी गई है, अर्थात प्रत्येक प्रकार की साधना केवल स्वस्थ शरीर द्वारा ही की जा सकती है। कुछ दशक पूर्व यह कहा जाता था-“पढ़ोगे लिखोगे तो बनोगे नवाब, खेलोगे कूदोगे तो होगे खराब” लोगों का यह मानना था, कि विद्यार्थी का काम केवल पढ़ना-लिखना ही है। परंतु वर्तमान समय में यह धारणा बदल गई है तथा शिक्षा में खेलों के महत्व को स्वीकार किया गया है।

स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का वास होता है। शरीर को स्वस्थ बनाए रखने के लिए व्यायाम तथा खेलकूद नितांत आवश्यक है। अस्वस्थ व्यक्ति, न ही अपना भला कर सकता है तथा न ही समाज के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकता है। खेलकूद के महत्व को स्वीकारते हुए आज प्रत्येक कक्षा की समय-सारिणी में एक कालांश (पीरियड) खेलकूद के लिए नियत किया गया है। फुटबॉल, हॉकी, वॉलीबॉल, कबड्डी जैसे अनेक खेलकूद हैं, जिनमें भाग लेकर विद्यार्थी अपने को स्वस्थ रख सकता है।

खेलकूद से मनोरंजन भी होता है और स्वास्थ्य लाभ भी। खेलकूद में भाग लेने वाले विद्यार्थियों का शरीर सुडौल एवं चुस्त होता है। इसके विपरीत जो विद्यार्थी केवल किताबी कीड़ा बनकर परीक्षा पास कर लेने को ही अपने जीवन का लक्ष्य बना लेते हैं, उनका शरीर या तो चुलबुला हो जाता है, या फिर अत्यंत दुर्लभ। ऐसे विद्यार्थियों की आँखों पर अल्पायु में ही चश्मा चढ़ जाता है तथा उनके चेहरे को काति बुझी-बुझी सी दिखती है।

खेलकूद में भाग लेने से विद्यार्थियों में खेल भावना का विकास होता है तथा उनमें राष्ट्रीय एकता की भावना पुष्ट होती है। विभिन्न धर्मों, जातियों तथा राज्यों के खिलाड़ी जब एक टीम के रूप में खेलते हैं, तो सांप्रदायिक सद्भाव की वृद्धि होती है, क्योंकि खिलाड़ी की न कोई जाति होती है, न धर्म। पारस्परिक सहयोग, मैत्री, सद्भाव, अनुशासन, संगम जैसे अनेक गुण खेल के मैदान में ही सीखे जाते हैं।

शिक्षा का उद्देश्य विद्यार्थी का सर्वांगीण विकास करना होता है। खेलकूदों के अभाव में विद्यार्थी का शारीरिक विकास नहीं हो पाता। जीवन में संतुलन लाने के लिए यह आवश्यक है, कि विद्यार्थी खेलकूदों में भाग लें। किसी ने ठीक ही कहा है- “खेल के मैदान में केवल स्वास्थ्य ही नहीं बनता, बल्कि मनुष्य भी बनता है।” अत: विद्यार्थियों के लिए खेलकूदों में भाग लेना आवश्यक ही नहीं अनिवार्य है।

खेल हमारे जीवन का महत्वपूर्ण अंग हैं। भारतीय जीवन पद्धति में हजारों वर्ष पूर्व से ऋषि-मुनियों ने योगासनों के महत्व को समझा तथा उसे जीवन में अपनाने की प्रेरणा दी। पौराणिक ग्रंथों में भी अनेक प्रकार के खेलों का वर्णन मिलता है। हमारे प्राचीन ग्रंथों में भी कहा गया है कि ‘शरीरमाद्य खलु धर्म साधनम्’ शरीर को स्वस्थ रखने के लिए खेल तथा व्यायाम प्रमुख साधन है।

खेल हमारे शरीर को हृष्ट-पुष्ट बनाते हैं तथा मन को स्वस्थ चिंतन धारा प्रदान करते हैं। खेल चाहे कोई भी हो. जब हम भाग-दौड़, उछल-कूद करते हैं तो हमारी मांसपेशियाँ मजबूत तथा शक्तिशाली हो जाती है। शरीर सुगठित हो जाता है तथा रक्त का संचार उचित रूप से होने लगता है। खेलों से शरीर की समस्त क्रियाएँ सुधरने लगती है तथा इसका सीधा प्रभाव हमारे स्वास्थ्य पर पड़ता है। स्वस्थ तन, मन से हम जीवन के महान आदर्शों को प्राप्त कर सकते हैं, अतएव स्वस्थ तन व मन के लिए खेलों में भाग लेना अत्यंत आवश्यक है।

खेल जहाँ एक ओर शरीर को हृष्ट-पुष्ट, शक्तिशाली, निरोग तथा बलवान बनाते हैं. वहीं वे मन को भी स्वस्थ करते है। खेलों से आपसी भाईचारे, विश्वास, प्रेम, सौहार्द, आज्ञाकारिता तथा अनुशासन का भाव विकसित होता है। खेल के मैदान में ही हम हार-जीत का सबक लेकर स्वस्थ मानसिकता का विकास कर सकते हैं। खेलों से मनुष्य में उचित निर्णय क्षमता का विकास होता है। ये मनोरंजन और व्यायाम का उत्तम मिश्रण है।

छात्रों के सर्वांगीण विकास के लिए खेल अत्यंत आवश्यक है। यही कारण है, कि शिक्षाविदों ने खेलों को शिक्षा का अनिवार्य अंग बनाया. ताकि बालकों का तन स्वस्थ रहे तथा उनमें स्वस्थ खेल भावना और स्पर्धा का विकास हो सके। खेल राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी मेलजोल, भाईचारा व विश्वबंधुत्व लाते हैं। इसलिए आज खेलों का महत्व बहुत बढ़ गया है।

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