Varsha Ritu Hindi Nibandh
भारत में अनेक ऋतुएँ आती हैं। यहाँ की ऋतुएँ संसार में सबसे सुंदर और मनोहारी होती हैं। अन्य देशों में मात्र तीन ऋतुएँ होती है।
लेकिन भारत में छह ऋतुएँ होती हैं-वसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, शिशिर व हेमंत कृषि प्रधान देश होने के कारण वषां का हमारे देश अधिक महत्व है। आज: किसान के नेत्र वर्षा की प्रतीक्षा करते रहते हैं। वर्षा का विस्तार चार माह तक देखा जा सकता है, इसलिए इसे हिंदी में चौमासा’ भी कहते हैं।
जेठ माह की गर्मी से तप्त जन जीवन वर्षा के आगमन की प्रतीक्षा करता है। पुरवैया का चलना ब्चा के आगमन की सूचना देने लगता है। धरती भी वर्षा ऋतु के काले उमड़ते बादलों के स्वागत में प्रस्तुत हो जाती है। पपीहे पीह पीहू करने लगते हैं, मोर नृत्य करने लगते हैं एवं मेंढक टर-टर करने लगते हैं। सूखें तालाब जल से पूर्ण हो जाते हैं, नदियों में नवयौबन की उमंग छा जाती है। इस प्रकार आनंद, मस्ती और उमंग के साथ वर्षा का आगमन होता है।
वर्षा के कारण चारों तरफ हरियाली छा जाता है। काले काले जामुन और पोले-पोले आम मन को मोह लेते हैं। पड़ों पर झूल पड़ जाते हैं, नारियां सावन के गीत गाती हैं। अत: सावन की मल्हारे चारों तरफ गंजती हैं। आकाश से बरसती चंबा के बीच बिजली चमकती है। तीज और रक्षाबंधन पर्व आते हैं।
कवियों ने वर्षा के कोमल और उग्र रूप का सजीव वर्णन किया है। बिहारी लाल, सूरदास, जायसी, मौरा आदि को कविता में वर्षा से हमें जीवन मूल्यों की स्थापना और सआचरण को प्रेरणा भी मिलगों है।
वर्षा के बिना कृषि संभव नहीं है, इसलिए वर्षा पारतवासियों के पालन-पोषण का महत्वपूर्ण आधार है। अत: यदि वर्षा न हो, तो देश में अकाल को स्थिति बन सकती है। वर्षा का जल सरोवरों को भर देता है तथा सूखी नदियों का उल्लास और उमंग से परिपर्ण का देता है। जल विद्युत का उत्पादन भी वर्षा पर ही निर्भर होता है।
वर्षा से रास्तों में पानी भर जाता है, जिससे यातायात में कठिनाई होती है। अनेक विषैले जीव-जंतु, कौड़े-मकोड़े व सर्प आदि बाहर निकल आत हैं। अनेक मच्छर पैदा हो जाते हैं जिससे मलेरिया, पीलिया आदि रोग फैल जाते हैं, नदियों में बाढ़ आ जाती है, जिससे जन-धन की भारी हानि होती है।
वर्षा हमारे जीवन का आधार है। वह हमें पीने के लिए जल की आपूर्ति करती है और अन्न का उत्पादन करती है। यदि समय से वर्षा न हो, तो चारों तरफ हाहाकार मच जाता है वर्षा ऋतु मनुष्य के लिए ईश्वर का वरदान है।
Varsha Ritu on 300 words
तेज़ गरमी से धरती झुलसती है, पेड़-पौधे सूखने लगते हैं पशु-पक्षी जल की तलाश में मारे-मारे फिरते हैं ऐसे में वर्षा की रिमझिम, धरती को मानो नया जीवन प्रदान करती है। यह ऋतु वर्षा ऋतु कहलाती है।
वर्षा ऋतु प्रत्येक प्राणी तथा प्रकृति को नवजीवन प्रदान करने वाली ऋतु है। सब इसका उमंग तथा उल्लास से स्वागत करते हैं। वर्षा आते ही किसानों के हृदय में आशाओं की लहरें उठने लगती है। वर्षा आने से पूर्व ही शीतल पवन बहने लगती है। वर्षा ऋतु में कुएँ, तालाब, नदियाँ जल से भर जाते है। बच्चे बारिश में नहाने का आनंद लेते हैं। चारों तरफ जल ही जल दिखाई देने लगता है। शीतल हवा के झोंके अत्यत सुख प्रदान करते हैं।
वर्षा के बाद चारों तरफ हरियाली छा जाती है। किसान खेतो में बीज बो देते हैं। चारों ओर फैली मखमली हरी घास अत्यंत सुंदर लगवी है। पपीहे को पीह पौह मदकों की टर-टर तथा जुगनुओं की झिलमिल वर्षा में चार चाँद लगा देती है। वर्षा की ऋतु में ही सावन का महीना तथा तीज का त्योहार आता है। स्वियाँ बगौचों में झूले डालकर गीत गाती है तथा वर्षा ऋतु का आनंद लेती है।
वर्षा ऋतु के अनेक लाभ हैं, कितु कभी-कभी होने वाली अतिवृष्टि जन-जीवन को अस्त-व्यस्त भी कर देती है। कच्चे घरों में रहने वाले लोगों को वर्षा में काफ़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। वर्षा ऋतु में चारों तरफ कीचड़ और गंदगी हो जाता है। इसके कारण अनेक मक्खियाँ-मच्छर हो जाते हैं। इस मौसम में देश के अधिकांश भागों में बाढ़ आने से लोगों को काफी नुकसान होता है।
वर्षा ऋतु को भले ही कितनी ही हानियाँ क्यों न हो, यह ऋतु मानव-जीवन में अत्यंत महत्व रखती है। जीव-जगत तो पूरी तरह से ही वर्षा पर निर्भर होता है।