Bhrashtachar par nibandh in hindi
भ्रष्टाचार का अर्थ है-भ्रष्ट आचरण। रिश्वत, मिलावट, कालाबाजारी, मुनाफाखोरी, जमाखोरी आदि अष्टाचार के कई रूप है। भ्रष्टाचार आज पूरे विश्व की प्रमुख समस्या बन चुका है। भारत में यह चारों ओर फैला हुआ है। चपरासी से लेकर बड़े-बड़े नेता, मजदूर से लेकर बड़े-बड़े उद्योगपति इसमें लिप्त हैं। भ्रष्टाचार के बहुत सारे घोटाले लोगों के सामने आ चुके हैं, जिनमें हवाला कांड, बोफोर्स घोटाला, झुग्गी-जमीन घोटाला आदि प्रमुख हैं। बहुत से अनगनित घोटाले अभी भी लोगों के सामने आने बाकी है।
(डॉक्टर, पुलिस, वकील, आयकर, विक्रीकर, अधिकारी वर्ग, सरकारी कर्मचारी, व्यापारी, सीमा शुल्क आदि कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है, जहाँ भ्रष्टाचार ने अपने पाँव नहीं जमा रखे हो। सभी स्थानों पर खुलेआम रिश्वत ली व दी जाती है। सब कुछ देखते-जानते हुए भी कोई भी इसके खिलाफ़ आवाज़ नहीं उठाता। यह इसके फैलने का सर्वप्रथम कारण है। इसका दूसरा प्रमुख कारण है-कोई भी व्यक्ति अधिकारी की कुर्सी पर बैठे व्यक्ति को भेंट व उपहारस्वरूप रूपये दे देता है, जिससे उसका काम तो तुरंत हो जाता है लेकिन वह उस अधिकारी को यह शिक्षा दे जाता है, कि बिना कुछ लिए काम करना महापागलपन है।
चपरासी बिना कुछ लिए अफसर से मिलने नहीं देता। क्लर्क बिना जेब गरम किए फाइल आगे नहीं बाता, अफ़सर विना पैसा लिए अपने हस्ताक्षर नहीं करता। आज भ्रष्टाचार के बहुत सारे घोटाले लोगों के सामने आ चुके हैं, जिनमें हवाला अधिकांश कार्यालयों का यही हाल है।सरकारी विभागों में कार्य करने वाले लोग भी इसके उत्तरदायी है। एक सरकारी स्कूल में पढ़ाने वाला अध्यापक वेतन बड़ी खुशी से ले लेता है. परंतु कक्षा में पढना अपना कर्तव्य नहीं समझता।
वह तो घर पर अतिरिक्त समय देकर ट्यूशन पढ़ाकर अच्छी कमाई करने का अपना अधिकार समझता है। इसी तरह सरकारी अस्पतालों में नियुक्त डॉक्टरॉ को उन अस्पतालों में पड़ मरीज़ां से अधिक चिंता अपने निजी नर्सिंग होम’ में भर्ती मरीजों की रहती है, क्योंकि वे मोटी रकम लेने का एक साधन हैं। आज के युग में संवेदनाएँ समाप्त-सी हो गई हैं और नैतिकता खो गई है। आज भाई ही अपने भाई का गला काटने को तैयार है।
भ्रष्टाचार फैलाने में सभी बराबर के हिस्सेदार है। यदि हम चाहते हैं, कि यह समाप्त हो जाए, तो हम सभी को निजी तौर पर यह प्रण लेना होगा, कि हम अपने किसी भी कार्य के लिए रिश्वत नहीं देंगे। रिश्वत लेना और देना दोनों कानूनी अपराध हैं। यदि मिलावट, कालाबाजारी और मुनाफाखोरी को अनदेखा न करके, उसके खिला आवाज़ उठाई जाए, तो भ्रष्टाचार अपना सिर न उठा सकेगा। फिर हम एक स्वच्छ भ्रष्टाचार रहित समाज में सांस ले सकेंगे। भ्रष्टाचार की जर भले ही कितनी भी गहरी क्यों न हो गई हों, यदि मनुष्य इसे उखाड़ फेंकना चाहे, तो यह उसके लिए असंभव कार्य न होगा।
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