ज्ञान क्या है?
नमस्कार है उस परमात्मा को जो सत्, चित् और आनन्द स्वरूप है। जो सबका कारण है परन्तु उसका कोई कारण नहीं है। जो ज्ञान मैं आप लोगों को देना चाहता हूँ वो उसकी प्रेरणा से आप लोगों के हृदय में स्थापित हो और आप लोगों को स्थायी सुख प्रदान करे।
अभी पहले बात मैंने शुरू की है तो पहले बात करते हैं ज्ञान के रूप की और बाद में आप लोगों को कोई संशय हो तो आप लोग भी पूछ सकते हैं।
प्र०1. ज्ञान क्या है?
ऊतर1. अपने को और परमात्मा को जान लेना ही ज्ञान है।
प्र०2. वह(ज्ञान) कैसे प्राप्त किया जाता है और किस से प्राप्त किया जाता है।
ऊतर2. जब तक अहंकार का त्याग नहीं होगा, तब तक कोई भी ज्ञान का भागी नहीं होता और ज्ञान का भागी नहीं होता है तो उस को ज्ञान भी नहीं दिया जाता है। और रही बात की किस से प्राप्त होता है तो इस का उत्तर भी बड़ा सरल है उस से जिसको ज्ञान हो और जो दूसरों को ज्ञान देना भी चाहता हो।
संशय: अगर वह ज्ञान देना चाहता है तब तो ठीक है लेकिन नहीं देना चाहता है तो हम उसे कुछ लालच देकर या डरा कर ज्ञान प्राप्त कर लेंगे।
निवारण: अगर उसमें लालच, भय और अहंकार ये दोष पाये जाते है तो वो कैसा ज्ञानी और कौन सा ज्ञान आप लोगों को वो अज्ञानी दे सकता है। क्यूँकि ये सब तो अज्ञानियों के दोष है।
आपका प्र०1. ज्ञान क्यूँ प्राप्त करे, मैं आपकी बेजती नहीं कर रहा उससे कुछ भी लाभ नहीं होगा, क्यूँकि इतना तो मैं जान गया हूँ की आप में ज्ञान तो है तभी आप इतने सटीक उत्तर दे रहे हो परंतु उस में मैं कई दोष देखता हूँ :
१. जब जीवन चल रहा है सब कुछ मिल रहा है तो किसी और चीज़ की क्या ज़रूरत है मतलब ज्ञान से ऐसा क्या नया हो जाएगा?
२. दूसरा उसको पाने के लिए पहले गुरू को ढुढो ओर फिर ये देखो की उसे सच में ज्ञान है भी या नहीं । बस अभी तो ये दो ही है।
उत्तर1. मैं ज़्यादा तो नी बोलूँगा या लिखूँगा लेकिन अभी के लिये इतना ज़रूर बता देता हूँ कि जब तक इस संसार से मोह रहता है तब तक कोई भी ज्ञान को पाने की इच्छा नहीं करता है क्यूँकि उसे प्रकृति के दोषों ओर उससे मिलने वाले दुखों का ही पता नहीं चलता । वह यह तक नहीं जान पाता है की उसके मनुष्य जन्म ओर पशुओं के जन्म में क्या अंतर है खाना खाना, सोना, मल त्याग करना और बच्चें पैदा करना ओर उन्हें पालना ये सब कार्य तो पशुओं में भी पाये जाते है, तो उस के जीवन ओर उन अविवेकि पशुओं के जीवन में क्या अन्तर है उस के जीवन का क्या लक्ष्य है क्यूँ वह बार-बार जन्म लेता है इन दुखो को भोगता है इन कर्म बन्धनो में क्यूँ बँधा हुआ है। ओर अब आते है आपके दूसरे प्रश्न की ओर जिसमें आपने पूछा है कि ” उसको पाने के लिए पहले गुरू को ढुढ़ो ओर फिर ये देखो की उसे सच में ज्ञान है भी या नहीं” तो जैसे मैंने पहले ही बताया था की गुरू उस को बनाया जाता है जिसके पास ज्ञान हो और जिसके पास ज्ञान होगा वो जन्म-मरण के बन्धन से भी मुक्त होगा तो इस धरती में कौन ऐसा है? अब आप ही बताइये.
सामान्य ज्ञान
जन्म-> गर्भ अवस्था -> शिशु अवस्था -> बाल्य अवस्था -> किशोर अवस्था ( खेल, व्यायाम, विद्या, शिक्षा, दीक्षा ) -> युवा अवस्था -> अधेड अवस्था -> वृद्ध अवस्था -> मरण अवस्था
सब का कारक है मन <- ज्ञान और गुरु <- गुण <- हाँ या नही
गुरु: धारण करवाता है.
ज्ञान: धारण करने योग्य है.
गुण: इन से पता चलता है की गुरु और शिष्य ज्ञान धारण करवा सकते है ओर कर सकते है या नही।
गुरु के साथ कब तक रहे:
१. जब तक पूर्ण ज्ञान प्राप्त न कर लिया जाए।
२. वो भी उचित तय समय तक।
३. गुरु उसे बनाना चाहिए जो संशय का समूल नाश कर दे।
५. अगर नही तो उसे त्याग देना ही उचित है।
६. और अगर गुरु उचित है तो उसके ज्ञान को धारण करके गुरु को गुरुदक्षिणा देने के बाद ही उसका त्याग करना चाहिए।
यह स्थितियाँ देश, काल और परिस्थिति के साथ-साथ बदलती रहती है
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