दीपावली पर निबंध

दीपावली पर निबंध

मानव जीवन में त्योहारों का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। लगातार एक जैसी दिनचर्या के अनुसार जीवन जीते रहने से मन में ऊब और अवसाद बढ़ जाता है। ऐसी स्थिति में यदि कुछ नवीनता न हो तो जिंदगी का स्वाद ही  बेमज़ा हो जाए। जिंदगी की एकरस्ता और ऊब को मिटाने तथा उसमें नए रंग भरने के उद्देश्य से सभी मानव समुदायों ने अपने –अपने हिसाब से त्योहार मनाने की परंपरा विकसित की है। सभी धर्मों और संप्रदायों में साल भर के अंदर कई– कई पर्व– त्योहार मनाने की प्रथा है। भारत में अनेक धर्मों और पंथों के लोग निवास करते हैं, जिनके कारण हर मौसम में यहां पर्वों का आयोजन होता रहता है। अत: भारत को ‘त्योहारों का देश ’ भी कहते हैं। दीपावली हिंदुओं का एक प्रमुख त्योहार है।

‘दीपावली’ शब्द की रचना ‘दीप’और ‘अवली ’ के योग से हुई है, जिसका अर्थ है–दीपों की माला या श्रृंखला। इस पर्व को असत्य पर सत्य की और अंधकार पर प्रकाश की विजय के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। यह ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय ’ का संदेश जनमानस को देता है। दीपावली का संबंध राम कथा से है। विभिन्न रामकथाओ में उल्लेख है कि जब मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम लंका विजय के पश्चात सीता, लक्ष्मण आदि के साथ अयोध्या लौटे, तब पुरजनो– परिजनों ने दीप मालिकाए सजाकर उनका स्वागत किया था। तब से कार्तिक मास की अमावस्या को प्रकाश उत्सव मनाने की परंपरा चली आ रही है। इस त्यौहार को लक्ष्मी– गणेश की पूजा और मां काली– पूजा के साथ भी मनाने की प्रथा है। जीवन में प्रकाश के महत्व को रेखांकित करने के लिए इस्लाम में शबे बरात और ईसाइयों में क्रिसमस का त्योहार भी रोशनी की व्यवस्था के साथ मनाया जाता है।

दीपावली के पूर्व हिंदू परिवारों में घरों के अंदर और बाहर की सफाई की जाती है। घरों की वार्षिक मरम्मत और रंगाई – पुताई की जाती है। 2 दिन पूर्व धनतेरस के अवसर पर नए बर्तन, जेवर, सिक्के, लक्ष्मी– गणेश की मूर्ति आदि खरीदने का रिवाज है। दीपावली की संध्या में पूजा घरों में नई मूर्ति स्थापित कर विधि पूर्वक लक्ष्मी– गणेश का पूजन करते हैं। तत्पश्चात दीप जलाकर उन्हें घरों के अंदर –बाहर सजाया जाता है और आतिशबाजी की जाती है। वैज्ञानिक मान्यता है कि दीप जलाने से बरसात में पनपे विषैले कीट– पतंगे जलकर नष्ट हो जाते हैं। व्यवसाय वर्ग के लोग इस शुभ तिथि को अपने नए खाता– बही की पूजा के साथ नए कारोबार शुरु करते हैं। इन सब अच्छी बातों के अतिरिक्त दीपावली के साथ कुछ कुप्रथाए भी जुड़ गई है। जुआ, नशाखोरी और अपराध का प्रचलन दीपावली में बढ़ जाता है, जो समाज के लिए अत्यंत घातक है।

हमें दीपावली के त्योहार से सही संदेश और प्रेरणा ग्रहण करते हुए इसका आनंद लेना चाहिए। इसे बनाने में धार्मिक श्रद्धा और सामाजिक सौहार्द्र का पूरा ध्यान रखना चाहिए। समाज के दबे– कुचले लोगों को मुख्यधारा में लाने के लिए प्रेम और भाईचारे का व्यवहार करना चाहिए। आतिशबाजी की फिजूलखर्ची और जुआ, नशा, अपराध आदि को रोकने के लिए समाज में जनजागरण पैदा करना चाहिए। यदि सकारात्मक सोच के साथ दीपावली मनाई जाए, तभी ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय ’ का संकल्प पूरा होगा।

इस पर्व के दिन लोग रात को अपनी प्रसन्नता प्रकट करने के लिए दीपों की पंक्तियां चलाते हैं और प्रकाश करते हैं। नगर और गांव दीप– पंक्तियों से जगमगाने लगते हैं। रात दिन के रूप में बदल जाती है। इसी कारण इसका नाम दीपावली पड़ा। भगवान राम लंकापति रावण को मारकर तथा वनवास के 14 वर्ष समाप्त कर अयोध्या लौटे तो अयोध्यावासियों ने उनके आगमन पर हर्षोल्लास प्रकट किया और उनके स्वागत में रात को दीपक जलाएं। उस दिन की पावन स्मृति में यह दिन बड़े समारोह से मनाया जाता है। इसी दिन भगवान राम की स्मृति ताजी हो जाती है।

दीपावली भारत का सबसे अधिक प्रसन्नता और मनोरंजन का  त्यौहार है। बच्चों से लेकर बूढ़ों तक में खुशी की लहर दौड़ उठती है। आतिशबाजी और पटाखों की ध्वनि से सारा आकाश गूंज उठता है। इसके साथ ही खूब मिठाई उड़ती है। सभी राग – रंग में मस्त हो जाते हैं। इसी दिन जैनियों के तीर्थकर महावीर स्वामी ने निर्वाण प्राप्त किया था। इस कारण यह दिन जैन भाइयों के लिए बड़ा महत्वपूर्ण है। स्वामी दयानंद तथा स्वामी रामतीर्थ भी इसी दिन निर्वाण को प्राप्त हुए थे। ऋषि निर्वाण उत्सव का दिन आर्य समाजी भाइयों के लिए विशेष महत्व रखता है। सिख भाई भी दीपावली को बड़े समारोह से मनाते हैं। इस प्रकार यह दिन धार्मिक दृष्टि से बड़ा पवित्र है।

दीपावली से कई दिन पूर्व तैयारी आरंभ हो जाती है। लोग  शरद ऋतु के आरंभ में ही घरों की लिपाई –पुताई करवाते हैं तथा कमरों को चित्रों से अलंकृत करते हैं। इससे मक्खी– मच्छर दूर हो जाते हैं। कमरे सोने के योग्य बन जाते हैं। इससे कुछ दिन पूर्व अहोई माता का पूजन किया जाता है। धन त्रयोदशी के दिन पुराने बर्तनों को लोग बेचते हैं और नए बर्तन खरीदते हैं। बर्तनों की दुकाने, बर्तनों से अनोखी ही शोभा देती है। चतुर्दशी को लोग घरों का कूड़ा– करकट बाहर निकालते हैं। कार्तिक मास की अमावस्या को दीपावली का दिन बड़े उल्लास से मनाया जाता है।

इस दिन लोग अपने इष्ट– बंधुओं तथा मित्रों को बधाई देते हैं और नूतन वर्ष में सुख– समृद्धि की कामना करते हैं। बालक – बालिकाएं नव – वस्त्र धारण कर मिठाई बांटते हैं। रात को आतिशबाजी चलाते हैं। बहुत से लोग रात को लक्ष्मी की पूजा करते हैं। कहीं दुर्गा सप्तशती का पाठ किया जाता है। तामसिक वृत्ति के लोग जुआ खेलकर बुद्धि नष्ट करते हैं। दीपावली हमारा धार्मिक त्योहार है। इसे यथोचित रीती से मनाना चाहिए। इस दिन विद्वान लोग व्याख्यान देकर जनसाधारण को शुभ मार्ग पर चला सकते हैं। जुआ शराब का सेवन बहुत बुरा है। इनसे बचन चाहिए। आतिशबाजी पर अधिक व्यय नहीं करना चाहिए।

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