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पर्यावरण पर निबंध - Class Of Achievers

पर्यावरण पर निबंध

Paryavaran Par Nibandh

धरती पर जीवन के लालन पालन के लिए पर्यावरण प्रकृति का उपहार है। वह प्रत्येक तत्व जिसका उपयोग हम जीवित रहने के लिए करते हैं वह सभी पर्यावरण के अंतर्गत आते हैं जैसे– हवा, पानी, प्रकाश, भूमि, पेड़, जंगल और अन्य प्राकृतिक तत्व। हमारा पर्यावरण धरती पर स्वस्थ जीवन को अस्तित्व में रखने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पर्यावरण शब्द का निर्माण दो शब्दों परि और आवरण से मिलकर बना है, जिसमें परि का अर्थ है हमारे आसपास अर्थात जो हमारे चारों और हैं, और आवरण जो हमें चारों ओर से घेरे हुए हैं।

मानव ने जब प्रकृति माता की गोद में आंखें खोली तो उसने अपने चारों ओर उज्जवल प्रकाश, निर्मल जल और स्वच्छ वायु का वरदान पाया। वन प्रदेशों की मनोहर हरियाली में उसने जीवन के मधुरतम सपने देखे। उसका पेड़ – पौधों से, फल, फूलों से, चहकते पक्षियों से, प्रभात और संध्याबेला से नित्य का संबंध था। प्रकृति के आंगन में खेलते हुए उसने पाया पुष्ट, निरोग शरीर और उत्साह– उल्लास से लबालब तनाव हीन मानस। किंतु धीरे– धीरे उसके मन में प्रकृति पर शासन करने की लालसा जागी। उसने प्रकृति को मां के स्थान से हटाकर दासी के स्थान पर धकेलना चाहा। इसको नाम दिया गया “वैज्ञानिक–प्रगति”। 

इसी वैज्ञानिक प्रगति के कारण आज सृष्टि का कोई पदार्थ, कोई कोना प्रदूषण के प्रहार से नहीं बच पाया है। प्रदूषण मानवता के अस्तित्व पर एक नंगी तलवार की भांति लटक रहा है।

जल मानव– जीवन के लिए परम आवश्यक पदार्थ है। जल के परंपरागत स्त्रोत हैं– कुएं, तालाब, नदी तथा वर्षा का जल। प्रदूषण ने इन सभी स्रोतों को दूषित कर दिया है। औद्योगिक प्रगति के साथ-साथ हानिकारक कचरा और रसायन बड़ी बेदर्दी से इन जल स्रोतों में मिल रहे हैं।

वायु भी जल जितना ही आवश्यक पदार्थ है। शवास– प्रवासन के साथ वायु निरंतर शरीर में जाती है। आज शद्ध वायु का मिलना भी कठिन हो गया है। वाहनों, कारखानो और सड़ते हुए औद्योगिक कचरे ने वायु में भी जहर भर दिया हैं।

प्रदूषित जल और वायु के बीच पनपने वाली वनस्पति या उसका सेवन करने वाले पशु– पक्षी भी आज दूषित हो रहे हैं। चाहे शाकाहारी हो या मांसाहारी कोई भोजन के प्रदूषण से नहीं बच सकता।

आज मनुष्य को ध्वनि के प्रदूषण को भी भोगना पड़ रहा है। कर्णकटु और ककर्ष ध्वनि मनुष्य के मानसिक संतुलन को बिगाड़ती है और उसकी कार्य क्षमता को भी कुप्रभावित करती है। वैज्ञानिक और औद्योगिक प्रगति की कृपा के फलस्वरुप आज मनुष्य ककर्ष, असहनीय और श्रवण शक्ति को छीन करने वाली ध्वनियों के समुद्र में रहने को मजबूर है। आकाश में वायुयानो की कानफोड़ ध्वनियां , धरती पर वाहनों, यंत्रों और संगीत का मुफ्त दान करने वाले ध्वनि विस्तारको का शोर आदि सब मिलकर मनुष्य को बहरा बना देने पर तुले हुए हैं।

वाहनों का विसर्जन, चिमनीओ का धुआं, रसायन– शालाओं की विषैली गैसे मनुष्य की सांसों में जहर घोल रही है। प्रगति और समृद्धि के नाम पर जहरीला व्यापार दिन दोगुना बढ़ता जा रहा है। सभी प्रकार के प्रदूषण हमारी औद्योगिक, वैज्ञानिक और जीवन स्तर की प्रगति से जुड़ गए हैं। हमारी हालत सांप– छछूंदर जैसी हो रही है।

प्रदूषण ऐसा रोग नहीं है कि जिसका कोई उपचार ही ना हो। इसका पूर्ण रूप से उन्मूलन न भी हो सके तो इसे हानिरहित सीमा तक नियंत्रित किया जा सकता है। इसके लिए कुछ कठोर, अप्रिय और असुविधाजनक उपाय भी अपनाने पड़ेंगे।

प्रदूषण फैलाने वाले सभी उद्योगों को बस्तियों से सुरक्षित दूरी पर ही स्थापित और स्थानांतरित किया जाना चाहिए। उद्योगों से निकलने वाले कचरे और दूषित जल को निष्क्रिय करने के उपरांत ही विसर्जित करने के कठोर आदेश होने चाहिए।

ध्वनि प्रदूषण से मुक्ति भी तभी मिलेगी जब वाहनों का अंधाधुंध प्रयोग रोका जाए। हवाई अड्डे बस्तियों से दूर बने और वायु मार्ग भी बस्तियों के ठीक ऊपर से न गुजरे। रेडियो, टेप तथा लाउडस्पीकरो को मंद ध्वनि से बजाया जाए।

प्रदूषण की समस्या मनुष्य का अदृश्य शत्रु है। धीरे – धीरे यह मानव जीवन को निगलने के लिए बढ़ती जा रही है। यदि इस बार समय रहते नियंत्रण नहीं किया गया तो आदमी शुद्ध जल, वायु, भोजन और शांत वातावरण के लिए तरस जाएगा। प्रशासन और जनता दोनों प्रयासों से ही प्रदूषण से मुक्ति मिल सकती है। गंगा सफाई अभियान प्रशासन का ऐसा ही प्रयास था, किंतु यह आयोजन सिर्फ एक प्रशासकीय फैशन या तमाशा बनकर नहीं रह जाए। एक स्वच्छ और स्वास्थ्यकर विश्व में रहना है तो प्रदूषण से लड़ना ही होगा।

1.पर्यावरण में जीवित रहने के लिए अधिक से अधिक पेड़ लगाने चाहिए।

2.पेड़ों को न खुद काटना चाहिए और न ही दूसरों को काटने देना चाहिए।

3.पानी का उपयोग आवश्यकतानुसार करना चाहिए।

गाड़ी का उपयोग कम से कम करना चाहिए, अगर वाहन पर दो व्यक्ति आएंगे तो 2 को ही बैठना चाहिए, न कि सिर्फ एक आदमी ही बैठे। ऐसे में अलग-अलग दो वाहनों का उपयोग होगा। जिसे प्रदूषण बहुत ज्यादा फैलेगा।

बिजली की बचत करनी चाहिए। जब बिजली की जरूरत हो तभी उसका उपयोग करना चाहिए। अन्यथा जब उसकी जरूरत न हो तो उसे बंद कर देना चाहिए।

पर्यावरणीय समस्याएं जैसे प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन आदि मनुष्य को अपनी जीवनशैली के बारे में पूर्ण विचार के लिए प्रेरित कर रही है और अब पर्यावरण संरक्षण और पर्यावरण प्रबंधन की आवश्यकता महत्वपूर्ण है। आज हमें सबसे ज्यादा जरूरत है पर्यावरण संकट के मुद्दे पर आम जनता और सुधी पाठकों को जागरूक करने की।

पेड़– पौधे के कटने से ही आजकल मनुष्य को बहुत ज्यादा बीमारी लगती है। जितना ज्यादा हो सके उतना अधिक मात्रा में पेड़ लगाने चाहिए और पेड़ों को कटने से बचाना चाहिए ताकि व्यक्ति स्वस्थ जीवन जी सके।

पूरे समाज को जागरूक करना होगा कि पेड़ है तो कल है। आजकल स्कूलों में भी छोटे-छोटे, प्यारे– प्यारे बच्चों को पर्यावरण के बचाव के लिए बताया जाता है की उन्हें किस प्रकार अपने पर्यावरण की रक्षा करनी चाहिए।

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