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दो हंस और एक कछुआ की कहानी - Class Of Achievers

दो हंस और एक कछुआ की कहानी

Ek kachhua do hans ki kahani

दिए एक विश्वास और किए गए वादे को निभाने की सीख।

बहुत पुरानी बात है। किसी जंगल में एक तालाब था। उसमें एक कछुआ रहता था। उस तालाब के पास दो हंस भी रहते थे हंस कछुए के मित्र थे।

दिन-भर हंस कछुए के पास ही रहा करते थे। आपस में बातचीत करते हुए उनका पूरा दिन बीत जाता था। सूर्यास्त के समय दोनों हंस अपने रहने के स्थान पर चले जाते थे।

इस तरह हँसी-खुशी इन तीनों दोस्तों के दिन बीत रहेको एक बार बहुत तज गर्मी पड़ी। जिससे तालाब सूखने लगे। तालाब को सूखता देखकर हस चितित हो गए और बोले-” मित्र! यह तालाब तो दिन-पर-दिन सूखता जा रहा है। आने वाले दिना म तुम यहाँ कस रह पाओगे? यह बात हमें बड़ा बन कर रही है।”

यह सुनकर, कछुए न कहा-“मित्रो! जल के बिना तो मैं जीविद ही नहीं रह सकता, इसलिए कोई उपाय सोचना पड़ेगा।” कुछ देर सोचकर, कछुआ बोला-” ऐसा करो, तुम दाना कोई जल से भरा तालाब दूँढ़कर आओ। जब जल से भरा तालाब मिल जाए, तो तुम दोनों मुझे वहाँ पहुँचा दना।”

अपने दोस्त कछुए की बात सुनकर हंस उड़ गए और जल से भरे तालाब को तलाश करने लगे। ढूँढ़ते-ढूँढ़ते उन्हें एक जल से भरा तालाब मिल ही गया। तालाब ढूंढकर व कछुए के पास आकर बोल-“मित्र! हमने जल से भरा तालाब ढूँढ लिया है, परंतु वह यहाँ से बहुत दूर है। तुम वहाँ तक कैसे चल पाओगे?”

कुछ देर सोचने के बाद कछुआ बोला-“तुम एक मजबूत व लंबी लकड़ी ले आओ। फिर तुम दोनों उस लकड़ी को दोनों तरफ़ से अपनी-अपनी चाँच से कसकर पकड़ लेना। मैं उस लकड़ी को दाँतों से बीच में से मजबूती से जकड़ लूँगा। फिर तुम दोनों उस लकड़ी को लेकर उड़ना और मुझे उस तालाब तक पहुँचा देना।”

कछुए की बात सुन हंसों ने कहा-“यह उपाय तो अच्छा है, परंतु इसमें खतरा अधिक है। उड़ते समय यदि तुमने मुँह खोला तो नीचे गिर जाओगे। इतनी ऊँचाई से गिरने के बाद तुम बच नहीं पाओगे।” कछुआ हंसों को विश्वास दिलाते हुए बोला-“मैं उड़ते समय अपना मुँह बिलकुल नहीं बोलूंगा।” इस तरह हंस कछुए को लेकर उड़ चले।

जब हंस बहुत ऊँचाई पर उड़ रहे थे, तो रास्ते में एक नगर पड़ा। एक आदमी की नजर उड़ते हुए हंस और लकड़ी से लटके कछुए पर पड़ गई। वह अचरज से बोला-‘”देखो-देखो, ये हंस कछुए को लेकर जा
रहे हैं!”

दूसरा आदमी बोला-” अरे! ये हस तो बहुत समझदार हैं। इन्हांन कछुए को ले जाने का बढ़ा अच्छा उपाय सोचा है।” यह सुनकर कछुए से रहा न गया। कछुआ में उन आदमियों को बताना चाहता था कि यह उपाय हंसों ने नहीं उसने सोचा था। कछुए ने यह बताने के लिए जैसे ही अपना मुँह खोला, वह तेजी से जमीन की ओर गिरने लगा और जमीन पर गिरते ही मर गया।

शिक्षा :- दिए गए विश्वास और किए गए वादे को निभाना चाहिए।

शब्दार्थ


सूर्यास्त–सूरज का छिप जाना
बेचैन-व्याकुल, परेशान
जकड़-पकड़ने की क्रिया, कसी हुई पकड़
अचरज-आश्चर्य, हैरानी मित्र-दोस्त, सखा
चिंतित-परेशान
तलाश-खोज, ढूँढना
उपाय-साधन, तरकीब

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